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________________ जेते गुरण परजाय है, द्रव्य अनन्त सुकाल । सिद्ध तिनको तुम जानो प्रभू, बंदु मै नमि भाल ॥ॐ ही यह नवजाय नम.प्र । १०६ । ज्ञान आरसी तुम विषै, झलके ज्ञेय अनन्त । वि० २७० सिद्ध भये तिनको नमे, तीनो काल सु संत ॥ॐ ही यह सर्वविदे नम ग्रयं । १०२ । चक्षु प्रचक्षु न भेद है, समदर्शी भगवान । नमूं सिद्ध परमातमा, तीनों जोग प्रधान ॥ ह्री ग्रह सर्वदर्शिने नमः ययं ॥ १०३॥ देखन कछु बाकी नहीं, तीनो काल मझार । सर्वालोकी सिद्ध है, नमूं त्रियोग सम्हार ॥ ॐ ह्रीं श्रीं सर्वावनोकायनम अर्घ्यं । १०४ तुम सम प्राक्रम और सब, जगवासी मे नाहिं | निज बल शिवपद साधियो, मैबंदू हूँ ताहि ॥ह्रो ममनन्तविक्रमाय नमः प्रयं १०५ निजसुख भोगत नहीं चिगे, वीर्य अनन्त धराय । तुम अनंत बलके धनी, बंदू मनवचकाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीं अनतत्रीर्याय नम श्रयं ॥ १०६ ॥ सुखाभास जग जीवके, पर निमित्त से होय । निज प्रश्रय पूरण सुखी, सिद्ध कहावै सोय ॥ ॐ ह्रीं श्रींनंतसुखायनम ग्रर्घ्यं ॥ १०७ भ्रष्टम पूजा २७०
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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