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इकदेशकर्म मलनाश पवित्रकहायो, तुमसर्वकर्ममलनाशि परमपदपायो सिद्ध निजरूपमगनमनध्यानधरं मुनिराजे, मैनमूं साधुसमसिद्धप्रकम्प विराजै ओ ही साधुपवित्राय नमः ॥ ४८ ॥
वि
२४ तुम रहो बंधसो दूरिएकांतसुखाई, ज्योनभनलिप्तसबद्रव्यरहोतिसमाहीं निजरूप० श्री ही साधुविमुक्ताय नम अर्घ्यं ॥ ४० ॥
सबद्रव्यभाव नोकर्मबध छुटकाया, तुमशुद्धनिरंजन निजसरूपथिरपाया ही साधुवन्मुक्ताय नम अर्घ्यं । ४६१ ॥ डिल्ल छन्द ।
निजरूप०
भावाश्रवविन प्रतिशयसहित प्रबंधहो, मेघपटलबिनज्योंर विकिरणग्रमंद हो मोक्षमार्ग वा मोक्ष श्रेय सब साधु है, नमत निरंतर हमहूँ कर्म रिपुकोद है ॐ ह्री माबुवन्ध प्रतिबन्धकाय नम अर्घ्यं ॥ ४६२।। तुमस्वरूपमें लीन परम संवर करै, यह कारण अनिवार कर्म श्रावन हरें सप्तमी मोक्षमाग० ॐ ह्री माधुसवरकारणाय नम अर्घ्य ॥४६ युद्गलीक परिणाम आठ विधि कर्म है, तिनकीकरतनिर्जराशुद्धसु परम है ॐ ह्री साधुनिर्जराद्रव्याय नम प्रध्य ॥४४॥
पूजा
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मोक्षमार्ग०