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________________ सिद्ध वि० भववासदुखीजेशरणगहै तुममनमे,तिनकोअवलम्बउभारो भयहर छिनमे ! निजरूप० ॐ ह्री साधुवीर्यशरणाय नमोऽयं ।।४।१।। गबोधअनन्तानन्तधरोनिरखेदा, तुम बलप्रपारशरणागतिविघनविछेदाई निजरूप० ॐ ह्री साधुवीर्यात्मशरणाय नमोऽअध्यं ।। ४५२॥ निजज्ञानानन्दी महा लक्षिमी सोहै, सुर असुरनमे नितपरम भुनी मनमोहै। । निजरूप० ॐ ह्री साधुलक्ष्मीअलकृताय नमोऽयं ।।४५३॥ भववासमहादुखरासताहिविनशाया, अतिक्षीनलीनस्वाधीनमहासुखपाया निजरूप ॐ ह्री साधुलक्ष्मीप्रणीताय नमोऽयं ।।४५४॥ त्रिभुवनका ईश्वरपना तुम्हींमैपाया, त्रिभुवनकेपातिक हरोमनू रविछाया । निजरूप० ॐ ह्री साधुलक्ष्मीरूपाय नमोऽध्यं ।।४५५।। तुमकालअनंतानंतअबाधविराजो,परनिमित्तविकारनिवारसुनित्यसुछाजो निजरूप० ॐ ह्री साधुभ्र वाय नमोऽयं ।।४५६॥ तिमछायकलब्धि प्रभावपरमगुरणधारी,निवसोनिजानंदमांहिचलअवि-षष्ठम् । कारी। निजरूप. ॐ ह्री साधुगुणध्रुव'य नमोऽयं ।।४५७'। तेरमचौदस गुरणथान द्रव्यहैजैसो, रहै काल अनन्तानन्त शुद्धता तैसो।। २४१ निजरूप० ॐ ह्री साधुद्रव्यगुणधं वाय नमोऽध्यं ।।४५८१.
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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