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________________ " वि० ज्ञान स्वरूप सुभाव तिहारा, उत्तम लोक कहै इम सारा । सिद्ध साधु भये शिव साधनहारै, सो तुम साधु हरो अघ म्हारे || ही साधुलोकोत्तमज्ञानस्वरूपाय नम अर्घ्यं ॥ ४२६ ॥ देखनमे कुछ श्राड न आवै, लोग तनी सब उत्तम गावै । साधु ॥ श्रो ह्री माधुलोकोत्तमदर्शनाय नम अर्घ्यं ।। ४३० ।। देखन जानन भाव धरो हो, उत्तम लोकके हेतु ग ओ ही साधुलोकोत्तमज्ञानदशनाय नम अर्घ्यं ॥ ४३१ ॥ २३८ हो । साधु ॥ जाकर लोग शिखरपद धारा, उत्तम धर्म कहो जग सारा । साधु ॥ श्री ही साधुलोकोत्तमधर्माय नम अर्घ्यं ॥ ४३२ ॥ धर्म स्वरूप निजातम मांही, उत्तम लोक विषै ठहराई । साधु ॥ श्रीमाधुलोकोत्तमधर्मस्वरूपाय नम अध्यं ॥ ४३३ ॥ 1 1 अन्य सहाय न चाहत जाको, उत्तम लोग कहै बल ताको । साधु ॥ ओ ही साधुलोकोत्तमवीर्याय नमः अर्घ्य ॥ ४३४ ॥ 21 उत्तम वीर्य सरूप निहारा, साधन मोक्ष कियो अनिवारा । साधु ॥ ओ ही साधुलोकोत्तमवीर्यस्वरूपाय नम अर्घ्यं ॥ ४३२ ॥ www सप्तमी पूजा २३८
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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