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________________ सिद्ध० वि० २३२ शरण अनिवार सुखदाई, प्रगट सिद्धान्त में गाई | पूर्ण श्रुतज्ञानं बल पाया, नमू सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्री पाठकत्रिमगलशरणाय नमोऽयं ।। ३६५ ।। लोकमे धर्म विख्याता, सों तुमही में सुखसाता । पूर्ण. ॐ ह्री पाठकलोकशरणाय नमः अयं । ३८६ ॥ जोग विन प्राश्रव नाहीं, भये निर श्राश्रवा ताही । पूर्ण. ॐ ह्री पाठकाश्रववेदाय नमः अयं ॥ ३८७॥ श्राश्रव करमका होना, कार्य था आपना खोना । पूर्ण. ॐ ह्री पाठका विनाशाय नमः प्रयं ॥ ३८८ ॥ तत्त्व निर्बाध उपदेशा, विनाशे कर्म परवेशा । पूर्ण. ॐ ह्री पाठक श्राश्रव उपदेशछेदकाय नम. अध्यं ।। ३८ ।। प्रकृति सब कर्मकी चूरी, भाव मल नाश दुख पूरी । पूर्ण. ॐ ह्री पाठकबध प्रन्तकोय नम मध्यं ॥ ३९०॥ न फिर संसार अवतारा, बन्ध विधि अन्त केर डारा । पूर्ण. ॐ ह्री पाठकबषमुक्ताय नम प्रध्यं ॥ ३१॥ Manv षष्ठम् पूजा २३२
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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