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________________ सिद्ध वि० २०८ तिहुँ लोकनाथ तिहुँ लोक मांहिं, या सम दूजो सुखदाय नाहि । शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२४२॥ ____ॐ ह्री सूरित्रिलोकशरणाय नम अयं । आगत अतीत अरु वर्तमान, ति: काल भव्य पावै निर्वाण । शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२४३॥ ॐ ह्री सूरित्रिकालशरणाय नम अयं । मधि अधो उर्द्ध तिहुँ जगत मांहि, सब जीवन सुखकर और नाहिं। शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२४४॥ ... ह्री सूरित्रिजगन्मगलाय नम. अयं । तिहुँ लोकमांहिं सुखकार आप, सत्यारथ मंगल हरण पाप । शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२४॥ ॐ ह्री सूरित्रिलोकमगलशरणाय नम अयं । उत्तम मंगल परमार्थ रूप, जग दुख नासे शिवसुख स्वरूप । शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२४६॥ ॐ ह्री सूरित्रिजगन्मगलोत्तमशरणाय नम अयं । मतमी पूजा २०८
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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