SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वप्रतीत निजातमरूप अनुभवकला, पायोसत्यानंदकुमारग दलमलाई सिद्ध निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचारहै, परमारथप्राचार्यसिद्धसुखकारहै। वि. ॐ ह्री सूरिसम्यक्त्वगुणेभ्यो नम अध्यं ।। २०४ ।। १९६ वस्तु अनंत धर्म प्रकाशक ज्ञान है, एकपक्ष हट गृहित निपटअसुहान है । निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचारहै, परमारथप्राचार्यसिद्धसुखकारहै। ॐ ह्री सूरिज्ञानगुणेभ्यो नम अर्घ्य ।। २०५ ।। वस्तुधर्मसमान ताहि अवलोकना, शुद्ध निजातमधर्मताहि नहीं लोपना निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचारहै, परमारथाचार्यसिद्धसुखकारहै। ॐ ह्री सूरिदर्शनगुणेभ्यो नम अध्य ॥ २०६ ।। अतुलअकम्पअखेदशुद्धपरिणतिधरै, जगतरूपव्यापार न इक छिन पादर, निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचारहै, परमारथाचार्यसिद्धसुखकारहै। ॐ ह्री सूरिवीर्यगुणेभ्यो नम अर्घ्य ॥२०७॥ षट्त्रिंशतिगुणसूरि मोक्षफल पाइयो,तातें हम इन गुणकरहीजशगाइयो पूजा निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचारहै,परमारथप्राचार्य सिद्धसुखकारहै १६६ ॐ ह्री सूरिपत्रिंशतगुणेभ्यो नम अध्यं ॥ २०८ ।। सप्तमी mummy
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy