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________________ सिद्ध वि. चेतन रूप सदेश बिराजै, प्राकृतिरूप अलिंग सु छाजै । सिद्ध समूह नमूशिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई ॥१८॥ ॐ ह्री सिद्धसाकारनिराकाराय नम अध्यं । नाहि गहै पर आश्रित जानो, जो अवलम्ब बिना पद मानो। सिद्ध समूह जजो मन लाई, पाप कलाप सबै खिर जाई ॥१६॥ - ॐ ह्री निरालम्बाय नमः अध्यं । राग विषाद बसै नहिं जामे, जोग वियोग भोग नहिं तामै । सिद्ध समूह जजो मन लाई, पाप कलाप सबै खिर जाई ॥१६॥ ___ॐ ह्री सिद्धनिष्कलकाय नमः अध्यं । ज्ञान प्रभाव प्रकाश भयो है, कर्म समूह विनाश भयो है। सिद्ध समूह जजो मन लाई, पाप कलाप सबै खिर जाई ॥१६२॥ __ॐ ह्री सिद्धतेजःसपन्नाय नम. अर्ध्य । पातम लाभ निजाश्रित पाया, द्वैत विभाव समूह नसाया। सिद्ध समूह जजो मन लाई, पाप कलाप सबै खिर जाई ॥१६३॥ ॐ ह्री सिद्धात्मसपन्नाय नमः प्रध्यं । षष्ठम १९६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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