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________________ URI १६१ अविरुद्ध विशुद्ध प्रसिद्ध महा, निज प्रातम-तत्त्व प्रबोध लहा। सिद्ध इनहीं गुरणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१६४॥ ॐ ह्री सिद्धसम्यक्त्वशरणाय नम अयं । जिनको पूर्वापर अन्त नहीं, नित धार-प्रवाह बहै अति ही। । इनहीं गुणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१६॥ ॐ ह्री सिद्धअनन्तशरणाय नम अयं । कबहूँ नहीं अन्त समावत है, सु अनन्त-अनन्त कहावत है। १ इनही गुरणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१६६॥ ॐ ह्री सिद्धअनन्तानन्तशरणाय नमः अध्यं । , तिहुँ काल सु सिद्ध महा सुखदा निजरूप विर्षे थिर भाव सदा । । इनहीं गुणमें मन पागत है, शिववास करो शरणागत हैं ॥१६७॥ ॐ ह्री सिद्धत्रिकालशरणाय नमः अध्यं । तिहुँ लोक शिरोमरिण पूजि महा, तिहुँ लोक प्रकाशक तेज कहा। सप्तमी इनहीं गुरणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१६॥ ॐ ह्री सिद्धत्रिलोकशरणाय नमः अध्यं । maamananminaanam
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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