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________________ w वि० १८७ हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । सिद्ध मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४७॥ ॐ ह्री सिद्धमगल अगगुरुलघुभ्यो नम. अर्घ्यं । पुद्गल कृत सारी विविधि प्रकारी, द्वैतभाव अधिकार । सब भांति निवारी निज सुखकारी, पायो पद अविकार ॥ हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४॥ ॐ ह्री सिद्धमगलप्रव्याबाधितेभ्यो नम अर्घ्य । अवगाह प्रणामी ज्ञानीरामी, दर्शन वीर्य अपार । सूक्षम अवकाशं अज अविनाशं, अगुरुलघू सुखकार ॥ हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार। मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४॥ ॐ ह्री सिद्धमगलाष्टगुणेभ्यो नम अध्यं ।। शुद्धातम सारं अष्ट प्रकारं, शिव स्वरूप अनिवार। है।' निज गुरणपरधानं सम्यकज्ञानं, प्रादि अन्त अविकार ॥ луллллллл सप्तमी पूजा १८७ AA
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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