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________________ amarinnnnnwara त्वं मंगलाना परम जिनेन्द्र । समादृतं मंगलमस्ति लोके । त्वत् पूजकानामपयान्ति विघ्ना क्षिप्र गुरुन्मत्सविधे व सर्पा ॥ तव प्रसादात् जगता सुखानि, स्वय समायान्ति न चात्र चित्रम्। सूर्योदये नाशमुपैति नून तमो विशाल प्रवल च लोके ।। यतस्त्वमेवामि विनायको मे दृष्टेष्ट-योगानवरुद्ध-भाव. । त्वन्नाम-मात्रेण पराभवति विघ्नारयस्तहि किमत्र चित्रम् ॥ पत्ता-जय जय जिनराज त्वद्गुणान्को व्यनक्ति, यदि मुरगुरुरिन्द्रः कोटि-वर्प-प्रमाणम् ।। बदितुमभिलपेद्वा पारमाप्नोति नो चेत्, कथमिह हि मनुष्य. स्वल्प-बुद्ध्या-समेत ॥ ___ ही अहंदादि-सप्तदश-मन्त्रेभ्यो अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। है श्रिय बुद्धिमनाकुल्य धर्म-प्रीति-विवर्द्धन । गृहि-धर्मे स्थितिर्भूयात् श्रेयासि मे दिशत्वरा ।। ___ इत्याशीर्वाद । हवन जैसा ऊपर बताया जा चुका है तदनुसार तीन कुण्ड पहले दिन ईट आदि से तैयार करा लिये जावे और उन्हे रगो से सुसज्जित कर दिया जावे । कुण्डो की तीनो कटनियो पर। साथिये बनाये जावे। तथा तीनो कटनियो पर चार चार लकडी की खटिया गाडकर उन मौली लपेटी जावे । मौली लपेटते समय ही अहं पचवर्ण सूत्रेण त्रीन वारान् वेष्टयामि' वोले । कुण्डो के पास ही दक्षिण या पश्चिम मे वेदिका मे सिद्धयत्र विराजमान किया जाना चाहिए । और पास मे चौकी पर अक्षत विछाकर उस पर मगल कलश स्थापित करे। पत्पश्चात् जल शुद्धि करें। जल शुद्धि के लिए निम्न मत्र बोले nirunnermnnermirmirnnnnnnnnnnnrnina
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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