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________________ RANAMRAurat R त्रिभुवन में नहीं पावतो, जो जिन गुरण अभिराम है। सिद्ध भये. तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ॥११॥ ॐ ह्री असाधारणसिद्ध भ्यो नम अयं । गर्भ कल्याण आदि युत, तीर्थंकर सुखधाम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ॥११॥ ॐ ह्री तीर्थकरसिद्ध भ्यो नम अर्घ्य । तीर्थंकर के समय मे, केवली जिन अभिराम है ! सिद्ध भये तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ।।१२०॥ ____ॐ ह्री तीर्थंकरअन्तरसिद्ध भ्यो नमः अयं । पंच शतक पच्चीस फुनि, धनुषकाय अभिराम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ॥१२१॥ ॐ ह्री उत्कृष्ट अवगाहनसिद्ध भ्यो नम अध्यं । आदि अन्त अन्तर विषे, मध्यवगाहन नाम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ॥१२२॥ ॐ ह्री.मध्यमअवगाहनसिद्धेभ्यो नम अयं । । ANPATI षष्ठम ३१८० - - --- 4 -
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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