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________________ INDIA मिथ्यारत प्रकृति अवधि विनाश, लोकोत्तम अवधीको प्रकाश। । सिद्ध० हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ।।३।। वि० ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमावधिशरणाय नम अध्यं । १७३ , मनपर्यय शिव मंगल लहाय, लोकोत्तम श्रीगुरु सो कहाय । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' मानन्द पाय ८४॥ . ॐ ह्री अर्हल्लोकोत्तममन पर्ययशरणाय नम अध्यं ।। आवरणतीत प्रत्यक्ष ज्ञान, है सेवनीक जगमे प्रधान । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'सन्त' आनंद पाय ।८।। ॐ ह्री ग्रहल्लोकोत्तमकेवल ज्ञानशरणाय नमः अध्यं । हो वाहय विभवसुरकृत अनूप, अन्तर लोकोत्तम ज्ञानरूप । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' मानन्द पाय ।६। ॐ ही अर्हल्लोकोत्तमविभूतिप्रधानशरणाय नम अर्घ्य । रतनत्रय निमित सिलो अबाध, पायो निज आनन्द धर्म साध। इसप्तमी हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ८७। ॐही अहल्लोकोत्तमविभूतिधर्मशरणाय नमः अध्यं । Sansar १७३
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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