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________________ सब कुमति विगत मत जिन प्रतीत हो जिसते शिवसुख दे श्रभीत । सिद्ध हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' श्रानन्द पाय । ६३ । ॐ ह्री श्रद्वादशागायश्रुतगणशरणाय नम अर्घ्यं । श्रनुमानादिक साधित विज्ञान, श्ररहन्त मती प्रत्यक्ष जान । वि० १६६ हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय । ६४ । ॐ ह्री अभिनिबोध काय शरणाय नमः अयं । जिन भाषित श्रुत सुनि भव्य जीव, पायो शिव अविनाशी सदीव | हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय । ६५ । ॐ ह्रीतश्रुतशरणाय नम अध्यं । प्रतिपक्षी सब जीते कषाय, पायो अवधी शिवसुख कराय । , हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय । ६६ । ॐ ह्री अदवषिबोधशरणाय नमः अयं । मुनि लहै है परिणाम श्वेत, जिन मन मनपर्यय शिव वास देत । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय | ६७ सप्तमी पूजा १६६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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