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________________ unrunnnurniw सिद्ध दोहा--सूक्ष्मादि गुण सहित है, कर्म रहित नीरोग । सिद्धचक्र सो थाप हूँ, मिटै उपद्रव योग। अथाष्टक । चाल बाराहमासा छन्द । सुरमरिण कुम्भ क्षीरभर धारत, मुनि मन शुद्ध प्रवाह बहावहिं । हम दोऊ विधि लाइक नाही, कृपा करहु लहि भवतट भावहिं॥ शक्ति सारु सामान्य नीरसो, पूज हैं शिवतियके स्वामी। द्वादश अधिक पंचशत संख्यक, नाम उचारत हूँ सुखधामी ॥१॥ ॐ ही श्रीसिद्धपरमेष्ठिने ५१२ गुण सहित श्री समत्तणाणदसण वीर्य सुहमत्तहेत्र अवग्गहरणं अगरुल घुमवावाह जन्म जरारोग विमाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। । नतु कोऊ चन्दन नतु कोऊ केसरि, भेट किये भवपार भयो है। केवल आप कृपा दृग ही सों, यह अथाह दधि पार लयो है। रीति सनातन भक्तन की लख, चन्दनकी यह भेट धरामी। । द्वादश अधिक पंचशत संख्यक, नाम उचारत हूँ सुखधामी ॥२॥ ॐ ह्री श्रीसिद्धपरमेष्ठिने ५१२ गुण सयुक्ताय श्रीसमत्तणाणदसण वीर्य सुहमत्तहेव अवगहण गुरुलघुमवावाह ससारतापविनाशनाय चन्दन नि० । unnnnnurnal षष्ठम पूजा १५२ हमत्तहेव
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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