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________________ भिद्धा वि० १८ शाल्यक्षतैरक्षत-मूर्तिमद्भि-रब्जादि-वासेन सुगन्धवद्भि । अर्हत्पदाभाषित-मगलादीन् प्रत्यूहनाशार्थमह यजामि ॥ ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिम्य अक्षत निर्वपामीति स्वाहा । कदम्ब-जात्यादिभवै सुरद्र मैतिर्मनोजात-विपाश-दः । अर्हत्पदाभाषित-मगलादीन् प्रत्यूहनाशार्थमह यजामि ।। ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिभ्य पुष्प निर्वपामीति स्वाहा। पीयूप-पिण्डैश्च शशाक-काति-स्पर्शद्भिरिप्टर्नयन-प्रियैश्च । अर्हत्पदाभाषित-मगलादीन् प्रत्यूहनाशार्थमह यजामि ॥ ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिभ्य नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा । ध्वस्ताधकार-प्रसर प्रदीपकृतोद्भवै-रत्न-विनिर्मितैर्वा । अर्हत्पदाभापित-मगलादीन् प्रत्यूहनाशार्थमह यजामि ॥ ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिभ्य दीप निर्वपामीति स्वाहा । स्वकीय-धूमेन नभोवकाश-व्याप्तैश्चहृद्ये श्च सुगन्ध-धूपै । अर्हत्पदाभाषित-मगलादीन्, प्रत्यूहनाशार्थमह यजामि ।। ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिभ्य धूप निर्वपामीति स्वाहा । नारग-पूगादि-फलैरनयँहन्मानसादि-प्रियतर्पकैश्च ।। अर्हत्पदाभाषित-मगलादीन् , प्रत्यूहनाशार्थमह यजामि ॥ ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिम्य फल निर्वपामीति स्वाहा । (शार्दूल वि०)-अभश्चदनतन्दुलाक्षत-तरूद्भूतैनिवेद्य वरै । दीपैधूप-फलोत्तमै समुदितैरेभि सुवर्ण-स्थितै ॥
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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