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________________ सिद्ध वि० अजीव न जीव न धर्म अधर्म, न काल प्रकाश लहै तिस धर्म । अबिन्दु प्रबंधु प्रबंध अमंद, करपद-वंद रहू सुखवृन्द ॥२३३॥ ____ॐ ह्री निर्लेपाय नमः अर्घ्य । अवर्ण अकर्ण अरूप अकाय, प्रयोग असंयमता अकषाय । प्रबिन्दु अबंधु अबंध अमंद, करपद-वंद रहूं सुखवृन्द ॥२३४॥ ॐ ह्री निष्कषाय नम अर्घ्य । न हो परसों रुष राग विभाव, निजातममे अवलीन स्वभाव । अबिन्दु प्रबंधु अबंध अमन्द, कर पदवन्द रहू सुखवृन्द ॥२३॥ ॐ ह्री प्रात्मरतये नमः अयं । दोहा-निज स्वरूपमे लीनता, ज्यों जल पुतली खार । गुप्त स्वरूप नमू सदा, लहूँ भवार्णव पार ॥२३६॥ ॐ ह्री स्वरूपगुप्ताय नम. अर्ध्य । जोहै सोहै और नहिं, कछु निश्चय व्यवहार । शुद्ध द्रव्य परमातमा, नम शुद्धता धार ॥२३७॥ षष्ठम पूजा १४४ ॐही शुद्धद्रव्याय नम अध्यं ।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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