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________________ सिद्ध० वि० १४२ शेषसे भमाय पत्रकी न पाय नोकलों। सो विशुद्ध भाव पाय जासको न अन्त हो, राज हो सदीव देव चरण दास "सन्त" हो ॥२२॥ ___ ह्री अतुलगुणाय नम. अयं । सूर्यको प्रकाश एक देश वस्तु भास ही, आपको सुज्ञान भान सर्वथा प्रकाश ही। सो विशुद्ध भाव पाय जासको न अन्त हो, राज हो सदीव देव चरण दास "सन्त" हो ॥२२६॥ ___ॐ ह्री अतुलप्रकाशाय नमः अर्घ्य । तास रूपको गहो न फेरि जास नाश हो, स्वात्मवासमें विलास पास त्रास नाश हो । सो विशुद्ध भाव पाय जासकौ न अन्त हो, राज हो सदीव देव चरण दास "सन्त" हो ॥२२७॥ ॐ ह्री अचलाय नमः अध्य। षष्ठम पूजा १४२
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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