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________________ वि. पर परिणामनसो नहिं मिलत है, निज परिणामनसो नहिं चलत है। . परिणामी शुद्ध स्वरूप एह, नमूसिद्ध सदा नित पांय तेह ॥१८॥ ॐ ह्री शुद्धपारिणामिकाय नम अयं ।। वस्तुता व्यवहार नहीं ग्रहै, उपस्वरूप असत्यारथ कहै। शुद्ध स्वरूप न ताकरि साध्य है, निर्विकल्प समाधि अराध्य है ॥१८६॥ . ॐ ह्री-अशुद्धरहिताय नम. अयं । द्रव्य पर्यायाथिक नय दोऊ, स्वानुभव में विकलप नहिं कोऊ।। सिद्ध शुद्धाशुद्ध प्रतीत हो, नमत तुम तिनपद परतीत हो ॥१८७॥ ॐ ह्री शुद्धाशुद्धरहिताय नमः अयं ।, चौपाई-क्षय उपशम अवलोकन टारो, निज गुरण क्षाइक रूप उघारो। युगपत सकल चराचर देखा, ध्यावत हूँ मन हर्ष विशेषा॥१८॥ ॐ ह्री अनन्तदृगस्वरूपाय नम अयं । षष्ठम् जब पूरण अवलोकन पायो, तब पूरण प्रानन्द उपायो। अविनाभाव स्वयं पद देखा, ध्यावत हूँ मन हर्ष विशेषा ॥१८६॥ १३४ पूजा ॐ ह्री अनन्तहगानन्दस्वभावाय नमः अयं ।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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