SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध० वि० १२६ www सब भाग अनन्तानन्ता, यह सूक्ष्मभाव धारंता । विधि नन्तानन्त परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१६१॥ ॐ ह्री अनन्तानन्तकर्मरहिताय नमः अयं । मोतीयादाम छन्द | न हो परिणाम विषै कछु खेद, सदा इकसा प्रणवै बिन भेद | निजाश्रित भाव र सुखधाम, करू तिस श्रानन्दको परिणाम' | ॐ ह्री आनन्दस्वभावाय नम अर्घ्यं । । १६३ ॥ धरै जितने परिणामन भेद, विशेषनि तै सब ही बिन खेद । पराश्रितता बिन आनन्द धर्म, नमू तिन पाय लहू पद शर्म ॥ ॐ ह्री आनन्दधर्माय नमः अर्घ्यं ।। १६३ ।। न हो परयोग निमित्त विभाव, सदा निवसे निज श्रानन्द भाव । यही वरणो परमानन्द धर्म, नमू तिन पाय लहू पद पर्म ॥ ॐ ह्री परमानन्दघर्माय नमः अयं ।। १६४ ।। कभू परसो कछु द्वेष न होत, कभू फुनि हर्ष विशेष न होत । रहे नित ही निज भावन लीन, नमू पद साम सुभाव सु लीन ॥ ॐ ही साम्यस्वभावाय नमः अर्घ्यं ।। १६५ ॥ [१ परिणाम = प्रणाम =नमस्कार ] षष्ठम् पूजा १२६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy