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________________ ॐ ह्री दुस्वरनामकर्मरहिताय नमः अध्यं । अडिल्ल छन्द-होत प्रभा मई कांति महारमणीक जू । जग जनमन भावन माने यह ठीक जू । यह आदेय सुप्रकृति नाश निजपद लहो । ध्यावत है जगनाथ तुम्है हम अघ दहो ॥१४१॥ ___ ॐ ह्री आदेयनामकर्मरहिताय नमः अध्यं । रूखो मुखको वरण लेश नहिं कांतिको। रूखे केश नखाकृति तन बढ़ भॉतिको । अनादेय यह प्रकृति नाश निजपद लहो। ध्यावत है जगनाथ तुम्है हम अघ दहो ॥१४२॥ ॐ ह्री अनादेयनामकर्मरहिताय नम अयं । होत गुप्त गुरण तो भी जगमे विस्तरै । जगजन सुजस उचारत ताकी थुति करै ।। यह जस प्रकृति विनाश सुभावी यश लहो। षष्ठम पूजा १२४
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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