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________________ सिद्धन er fare CTH आयात पावक-सराः सुर-राजपूज्य-सस्थापना-विधिषु सस्कृत-विक्रियाहाः। स्थाने यथोचितकृते परिबद्ध-कक्षाः संतु श्रिय लभत पुण्य-समाज-भाजा ॥5 हे अग्निकुमार जाति के देवो । इन्द्रो द्वारा पूजनीय भगवान के इस पूजा विधान में आकर तिष्ठो एव अग्नि सम्वन्धी समस्त उपद्रवो को दूर करो। फिर नागकुमार देवो को कहे और पूष्पक्षेपण करे । नागा:समाविशत भूतल-निवेशाः स्वा भक्तिमुत्रसित-गात्रतया-प्रकाश्य ! प्राशी-विषादि-कृत-विघ्नविनाश-हेतो स्वस्था भवतु निज-योग्य-महासनेषु ।। भूतल मे निवास करने वाले हे नागकूमार जाति के देवो हमारे इस पूजा वि आशीविप आदि सर्व विघ्नो को दूर करो एव उचित स्थान पर तिष्ठो। भूमि शोधन के पश्चात् जहा श्री जी लाकर विराजमान करना हो वहा पीठ प्रधान, निम्न प्रलोक बोलकर करे। क्षीरार्णवस्य पयसां शुचिभिः प्रवाहैः प्रक्षालितं सुर-वरैर्यदनेक-वारम् । __ अत्युद्यमद्य तदह जिनपाद-पीठ प्रक्षालयामि भव-सभव-ताप-हारि ।। पीठ स्थापन के पश्चात् उसके आगे दश दिग्पालो की स्थापना निम्न प्रलोक बोन-5 कर करे और दश दिशाओ मे पुष्पक्षेपण करे। इन्द्राग्नि-दडधर-नैऋत-पाशपारिण-वायूत्तरेण-शशिमौलि-फरणीन्द्र-चन्द्रा ।। प्रागत्य यूयमिह सानुचरा सचिन्हाः स्वं स्वं प्रतीच्छत बलि जिनपाभिषेके ।।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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