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________________ सिद्ध वि. वैक्रियक तनु परमाणु मिल, परस्परा अनिवारा। हो स्कन्ध रूप पर्याई, यह बन्धन परकारा॥ वैक्रियिक तनु बन्धन तुमने, छेद कियो निरधारा। भये प्रबंध अकाय अनुपम जजू भक्ति उर धारा भए०७५ *ह्री वैक्रियिकबन्धनछेदकाय नम. अयं ।। मुनि शरीरसो बाहिज निसरे, संशय नाशनहारा । ताको मिले प्रदेश परस्पर, हो सम्बन्ध अवारा ॥ यही अहारक बन्धन तुमने, छेद कियो निरधारा भए०७६। * ह्री आहारकबन्धनछेदकाय नम. अध्यं । दीप्त जोति जो कारमारणकी, रहै निरन्तर लारा। जहां तहां नहिं बिखरै कन ज्यो, बहै एक ही धारा ॥ तैजस नामाबंधक तुमने छेद कियो निरधारा॥भए॥७७॥ ॐ ह्री तेजसबम्धनरहिताय नम अयं । द्रव्य कर्म ज्ञानावरणादिक, पुद्गल जाति पसारा। एक क्षेत्र अवगाही जियको, दुविधि भाव करतारा ॥ ११० षष्टम ।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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