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________________ सिद्धo . . ३० १०५ urunuuminumurmurarunwarya सो नाम कर्म तुम नाश कीन, मै नमसदा उर भक्ति लीन।५४।। ॐ ह्री नामकर्मरहिताय नमः प्रध्य ।। जासो उपजे तिर्यंच जीव, रहै ज्ञान हीन निर्मल सदीव । सो तिर्यग्गति तुम नाश कीन, मै नमू सदा उर भक्तिलीन ॥५॥ ॐ ह्री तियंचगतिरहिताय नम अयं ।। जो उदय नारकी देह पाय, नाना दुख भोगे नर्क जाय । सो नरकगती तुम नाश कीन, मै नमसदा उर भक्तिलीन ॥५६॥ ह्री नरकगतिरहिताय नम अयं । चउ विधि सुरपद जासो लहाय, विषयातुर नित भोगे उपाय। सो देवगती तुम नाश कीन, मै नमू सदा उर भक्तिलीन ॥५७॥ ॐ ह्री देवगतिकमरहिताय नम अयं । जा उदय भये मानुष्य होत, लह नीच ऊंच ताको उद्योत । सो मानुष गति तुम नाश कीन, मै नमूसदा उर भक्ति लीन ॥५॥ ॐ ह्री मनुष्यगतिरहिताय नम. अयं ।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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