SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मान करि अणुव्रत न हो कदा, रहै अवत युत दर्शन सदा। सिद्ध है अप्रत्याख्यानी कर्म सो, भये सिद्ध नमूतिन नासियो ॥२६॥ ॐ ह्री अप्रत्याख्यानावरणमानकर्मरहिताय नमः अध्यं । ६ देशवृती श्रावक नहीं होत है, वक्रताको जहं उद्योत है। है अप्रत्याख्यानी कर्म सो, भये सिद्ध नमू तिन नासियो ॥३०॥ । ॐ ह्री अप्रत्याख्यानावरणमायाविमुक्ताय नम अयं । है मोह लोभ चरित जे जिय बसे, देशवत श्रावक नहीं ते लसै। है है अप्रत्याख्यानी कर्म सो, भये सिद्ध नम तिन नासियो ॥३१॥ 5 ॐ ह्री अप्रत्याख्यानावरणलोभविमुक्ताय नम अध्यं । पडिल्ल छन्द। प्रत्याख्नानी क्रोध सहित जे पाचरे, देशवती सो सकल वृत्त नाहीं धरे।। चारितमोहसुप्रकृति रूप तिह नाम है, नाश कियोमै नम सिद्ध शिवधाम है। पचम ॐ ह्री प्रत्याख्यानावरण क्रोधविमुक्ताय नम अयं ॥३२॥ प्रत्याख्यानभिमान महान न शक्ति है, जास उदय पूरणसंयम अव्यक्त है। चारित मोह सुप्रकृति रूप तिह नाम है, नाश कियोमैन सिद्ध शिवधामहै। wuur runmunanawr पू
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy