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ह्री अकारितमानकायारम्भस्वरूपरताय नमः अध्यं । सिद्ध० , मानारंभ अनन्दित काय, प्रणमूविमल शुद्ध पर्याय ॥ वि० .
___ॐ ह्री नानुमोदितकायारम्भशुद्धपर्यायाय नमः अध्यं । ५२ दोहा-मायायुत संरंभ विधि, तनसों करत न आप।
गुप्त निजामृत रस लहै, नमू तिन्है तज पाप ॥११२॥
ॐ ह्री अकृतकायमायासरम्भ-अमृतगर्भाय नमः अध्यं । मायायुत संरम्भ विधि, तनसों नहीं कराय। मुख्य धर्म चैतन्यता, बिनवै प्रणम् पाय ॥११३॥
___ॐ ह्री प्रकारितकायमायासंरम्भचैतन्याय नमः अयं । मायायुत संरम्भ मय, नानुमोदयुत काय । वीतराग आनन्द पद, समरस भावन भाय ॥११४॥
___ॐ ह्री नानुमोदितकायसरम्भ-समरसीमावाय नम. मध्यं । समारम्भ माया सहित, प्रकृत तन विच्छेद । बन्ध दशा निज पर द्विविध, नमत नसभव खेद ॥११॥
ॐ ह्री प्रकृतकायमायासमारम्भभवछेदकाय नम. अयं ।
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