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________________ यवहार० ॥ १६ ॥ वा वत्थए, नो से कप्पड़ परं एगरायाओ वा पुरायाओ वा वत्थए जं तत्थ परं एगराया वा पुरायाओ वा वसइ से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ २२ ॥ भावार्थ ।। २० ।। परिहार कल्पनी समाचारी परिहार तपने विषे रहेलो साधु बीजा बाहार गामादिकने विषे रहेल स्थिवनी वैयावचने का जाय ( गमन करे ) तैवारे तप लइने जाय के शुं करे ते भणी कहे छे, स्थिवर ( ते आचार्य ) ते साधु प्रायश्चितनुं तप संभारे एटले के बाहार जाती वखते परिहारीने आचार्य संभारे जे तमे परिहारी तप सहित छो ( वळी तेने कहे के ते तप तमे मुकीने जाओ, पछी जो ते साधु समर्थ होय तो तप करीने जाय ने असमर्थ होय तो मुकीने जाय. ( हवे परिहारीने जावानो आचार व हे छे ) ते साधुने एक रात्रीनी प्रतिज्ञा करीने रहेवुं कल्पे. ( अभिग्रह एटले प्रतिज्ञा करीने जावानुं कारण एट के वाटे जातां गोकुलादिकने विषे प्रचुर ( घणो ) गोरसादीक लाभे तो शाता जाणीने प्रतिबंध न उपजे तेथी कोइ कारणविना एक रात्री उपरांत रहेतुं न कल्पे एम करीने चाले ) वळी जे दिशाए अनेरा साधर्मिक साधु साध्वी विचरता होय ते दिशाने विषे अंगीकार करीने जाय. वळी त्यां सुंदर आहार उपधी वस्त्र आदि देखीने विहार निमित्ते वस रहेनुं तेहने न कल्पे. त्यां रोगादिक कारण निमित्ते तेने वसवुं ( रहेवुं ) कल्पे. ते स्थिवरादिक कारण पुरुं थए अनेरा कहे के अहो आर्यो एक रात्री अथवा बे रात्री रहो ? एम ते वैयावच करवा गयो ते साधुने एक रात्री अथवा वे रात्री वसवुं कल्पे. एक रात्री अथवा बे रात्री थकी उपरांत वसवुं कल्पे नहि. जे कोइ त्यां एक रात्री अथवा बे रात्री उपरांत (निष्कारणे ) वसे तो ते साधुने निष्कारणे एक बे रात्री उपरांत जेटली रात्री रहे तेटली रात्रीनो छेद अथवा प्रायश्चित तप पण पामे ॥ २२ ॥ 14 उद्देसओ ॥ १ ॥ ॥ १६ ॥
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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