SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उद्देसओ विहार ॥ ७॥ मूळपाठ ॥ ४ ॥ जे निग्गन्था य निग्गन्धीयो य संजोइया सिया, नो एहं कप्पइ' पारो कखं पामिएकं संभोइयं विसंजोगं करेत्तए, कप्प हं पञ्चकखं पामिएकं संजोइयं विसंजोगं करेत्तए. जत्थेव थन्नमन्नं पासेजा तत्थेव एवं वएका । अह णं अजो तुमाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पञ्चकखं संभोगं विसंजोगं करोमि. से य पमितप्पेजा एवं से नो कप्पर पञ्चकखं पामिएकं संजोश्यं विसंजोगं करेत्तए. सेय नो पमितप्पेङा एवं से कप्पइ पञ्चकखं पामिएकं संजोश्यं विसंजोगं करेत्तए ॥४॥ भावार्य ॥ ४ ॥ जे कोइ साधु साध्वी जेमने माहोमांहि १२ प्रकारना संभोग कल्पे छे ते पैकी साधुने परोक्ष रीते तथा । वीजा स्थानके सन्मुख कह्या विना संभोगी (आहार भेगो) साधुने विसंभोगी (आहारपाणी जूदो) करवो कल्पे नहि. सं. भोगी साधुने तेज स्थानके प्रत्यक्ष रीते तेनी सन्मुख कहीने तेने विसंभोगी करवो कल्पे. ज्यां पोते तेने माहोमांहि सन्मुख देखे त्यांज तेने एम कहे, हे आर्य ? हवे हुं तमारी साथे आवा कारणथी तमारो संभोग इवेथी नहि करूं एम मोदामोड तेनी स. १Hadda (एचमां वधारे) निग्गन्थे after कप्पइ (पछी). २ Hadds (एचमां वधारे) पाडियक for पाडिएक ( ने बदले ). नवराज 1१०५॥
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy