SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - -- 7 -4 MARA -K याइं एहं केइ ए वा परिहारे वा, नत्थि याई एहं के आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ सवेसिं तेसिं तप्पत्तियं ठेए वा परिहारे वा ॥१८॥ भावार्थं ॥ १८ ॥ ते गामने विपे ज्या लगे सन्निवेशने विषे बळी जुदा जुदा गढ होय, जुदा जुदा दरवाजा होय, जुदा हैं || जटा नीयळवा पेसवाना मग होय त्यां घणा आचारंग निसीथना अभण, अगिताधने एकठा रहेg कल्पे नहि. जो इहां फोइ एक आचारंग निसीयना मणगार होय तो तेनी स.थे त्रण रात्रि एकठा आगीने रहेg कल्पे ने एम करवामां तेओ दीक्षानो छेद के तपन प्रायश्ति पाम नतिजा त्यां वोइ आचरिंग निसीथना भणनार नथी तो जे साधु व्रण रात्रि त्यां वसे नो ते सघळाने ते पदवीनो जेटला दियम त्यां रहे तेटला दिवसनो छेद अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे. (आनो सार नीचे मुजय. ते गामादिक्ने विपे जुदा जुदा गवाहादिक होय त्यां घणां अगितार्थने एकठा रहेg कल्पे नहि. जो वस्तिना अभावे तथा आहारादिफ न मळे ते कारणे गितार्थ, अगितार्थ घणाजण एकठा न रहि शके तो गितार्थनी नेश्राए अगीताथ जुदा जुदा रहे पण अगितार्थ त्रीजे दहाडे गीतार्थ साथे रहे कलो. ए केवा रीते ते कहे छे. आचार्य अगितार्थनी सार संभाळ माटे एक | गितार्थने मोकले तेनी साथे अगितार्थ रहे तेमां प्रायश्चित आये नहि. हवे जो त्रीजे दहाडे गितार्थ त्यां आवीने न रहे अथवा | ते गितार्थने सपीपे अगितार्थ आवीने रहे नहिं पण एकलो रहे तो ते दरेक अगितार्थने प्रायश्चित आये ) ॥ १८ ॥ उपर अ. | गितार्थ आधी पायु. ये वहु श्रुतीए केम रहेवू तेना आचारनो अधिकार कहे छे ।। अर्थ ॥ १९ ॥ से दे। गा० गामने विपे । वा० अथवा। जा० ज्यां लगे । रा० राज्यधानीने विषे । वा० वळी । .-- Cre .
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy