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________________ - ** परिहारं च से ने पाउणइ-एस कप्पे थेरकप्पियाणं. एवं से नो कप्पर, एवं से नो चिट्ठइ, परिहारं च नो पाजणइ-एस कप्पे जिण कप्पियाणं ॥२१॥ त्ति बेमि.. भावार्थ ॥ २१ ॥ साधु अधवा साध्वीने रात्रे अथवा संध्यावेळा लांवो सर्प फरस्यो करडयो होय तो ते साध्वी पुरुष पासे । औपध कराये ने इरुप ( साधु ) स्त्री पासे औषध करावे. एम ते स्थिवर कल्पी साधु साध्वीने अपवाद मार्गे करवु कले, एम ते स्थिवर पल्पी साधु साची अपवाद सेवतां रहे पण भष्ट न थाय ने परिहार तप पण न पामे, ए स्थिवर कल्पीनो आचार। कालो. हये जिन कल्पीनो आचार कहे छे. जिन कल्पीने उपर मुजब अपवाद मार्गे पण ओपड करावयु के अपवाद सेववो न कल्पे ने एम अपवाद न सेवे ते प्रायश्चित न पामे. ए आचार गिन कल्पीनो कह्यो !!२१॥ एम सुधर्मा स्वालिए जंबू स्वामिने क[.. अर्थ ॥ ५॥ ६० व्यवहार सूत्रनो । पं० पांचपो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥५॥ मूळपाठ ॥ ५॥ ववहारस्स पञ्चमो उद्देसयो समत्तो ॥५॥ भावार्य ॥ ५ ॥ व्यवहार मूत्रनो पांचमो उद्देसो पुरो थयो ॥ ५॥ - - - - -- Premi-her १ (एचमां ) णो for से न (पदले). २ (एच) कप्पो. -
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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