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________________ पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पर आयरियत्तं वा (जाव) गणावबेइयत्तं वा जदिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २५ ॥ त्ति वेमि ॥ ___भावार्थ ॥ २९ ॥ घणा साधु, घणा गणावच्छेदक, घणा आचार्य, घणा उपाध्याय, बहु सूत्री, घणा आगमना जाण घणे प्रकारे, घणीवार गाहागाढ कारणे माया कपटे जुहूं वोले, वैद्य ज्योतिपादिक असूत्रने भारलवे करी पापकर्म करी जीवे , 1 तमने जावनीव लगे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थिवर, गणि के गणावच्छेदक ए छ पदवी मांहेली कोइ पण पदवी आपवी , के धारवी कल्पे नहि ॥ २९ ॥ एम हु कहुं हुं ।। अर्थ ।। व० व्यवहार सूबनो । त० बीजो । उ० उद्दसो । स० पुरो थयो ॥ ३॥ मृळपाठ ॥ ववहारस्त तइयो उद्देसयो समत्तो ॥ ३ ॥ . भावार्थ ॥ व्यवहारसूत्रनो बीजो उद्देसो पुरो थयो ॥ ३ ॥ AAAAAAAERE - CROR-SASARALES
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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