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________________ TEC२- रहार ५८॥ 42-ARER मूळपाठ ॥ २२ ॥ आयरियउवज्काए आयरियजेवज्जायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएजा, उद्देसओ. ॥३॥ तिमि संवतराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणाबल्लेइयत्तं वा नदिसित्तए वा धारेत्तए वा. तिहिं संवबरेहिं वीइक्कन्तेहिं चनस्थगंसि संवबरंसि पट्ठियंसि वियस्स उवसन्तस्स उवरयस्स पमिविरयस्स एवं से कप्पइ आयरियतं वा (जाव) गणावलेश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २२ ॥ भावार्थ ॥ २२ ॥ जे आचार्य उपाध्याय आचार्य उपाध्यायपणुं मुकीने द्रव्यलिंग छांडीने मैथुनादिक आदरीने फरी दीक्षा | लीए ते वारे त्रण वरस लगे तेने आचार्य पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदक पदवी आपवी के धारवी कल्पे नहि, त्रण थए चोथु वर्षे वेठे ज्यां लगे मन विकार रहित थयु होय तो आचार्य पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी तेने स्थापवी के धारवी कल्पे ॥ २२ ॥ उपला सूत्रमा चोथा व्रतना खंडणहारने पदवी देवा आश्री कां. ते मैथुन सेवनार मुखावाद बोले तेने पदवी न आवे ते अधिकार कहे छे. १H has ( एचमां )आयरिए आयरियत. २ H adds ( एचमां वधारे)निम्विकारस्स. ३ H has a separatesutra for (एचमां जुदो पाठ छे) उवज्झाए (माटे)
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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