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________________ श्रीउपदे- शपदे ॥३५३॥ निम् धरणीए निवडिया कहवि तत्थेव ॥ ३६७ ॥ लग्गा तफलवसओ सोहाइसयं परं तहा पत्ता । जह सबलोयलोयणसंतो- शकलासविहाइगी जाया ॥ ३६८ ॥ झत्ति विउद्धो तत्तो पाहाउयमहुरतुरसहेण । परिभावेइ सुमिणओ एसो अच्चब्भुयब्भूओ वतीनिद ॥ ३६९ ॥णजइ वयणं गुरुणो अणुस्सरंतो सयं च पुच्छामि । गुरुमेवत्ति विचिंतिय निम्मावियगोसकरणिज्जो ॥ ३७० ॥ 5 तुरियं गओ सगासे गुरुणो कयपायवंदणो कहइ । तं सुमिणं परिभाविय सम्म गुरुणा समाइ8 ॥ ३७१॥ कप्पतरू तं है नरवर! छिन्नलया पुण विउत्तिया देवी । मन्नामि जायपुत्ता मिलिही अजेव सा तुझ ॥ ३७२ ॥ तुह पायपसायाओ एवं होउत्ति णिच्छओ एस । गुरुआणाकारीणं किं नाम न होइ कल्लाणं? ॥ ३७३॥ एवं बहुमाणपरो गुरुमभिवंदिय गओ नियावासं । आकारिओ य दत्तो भणिओ लज्जोणयमुहेण ॥३७४॥ एयमकजं विहियं मित्त! मसीकुच्चओ तहा दिन्नो। टू पबिंदुमंडलनिभे कुलम्मि निययम्मि मूढेण ॥ ३७५ ।। तीए अदंसणे सबहेव मरियवमेस मे णियमो । तहवि तुमं रहस हिओ तुरगारूढो वणं गंतुं ॥ ३७६ ॥ अन्नेसिऊण आणेह जीवमाणं लहु इहं देवि । तम्मरणनिच्छयं वा लहाहि इय है 8 भासिओ दत्तो ॥ ३७७ ॥ झत्ति तओ निक्खंतो ससंभमं तं वणं परिभमंतो । दिवणिओगेणेगं तावसकुमरं निभालेइ ॥३७८ ॥ भो भो दिट्ठा तुमए अन्नेण व तावसेण इह रन्ने । पसविउकामा एगा तरुणी रमणी सुरवहुब? ॥३७९ ॥ है * भणियं तेण कओ इह तुन्भे दत्चेण संखपुरउत्ति। इयरेण पुण निवो किं तीए उवरिं न उज्झेइ ॥ ३८०॥ अज्जवि वइरं अन्नेसणथमिहमागओ तुम जम्हा? । जाणइ एसोत्ति परं पहरिसमणुपत्तओ भणइ ॥ ३८१॥ गरुई कहा इमीए सक्कि- १ ॥३५३॥ जइ रिसिकुमार! नो कहिउं । परमत्थो. इत्थ इमो जई जीवंतिण पेच्छेइ ॥ ३८२ ॥ संखो राया ता जलियजलणम
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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