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________________ -244 - - मा पर मणोरहे रिउजणस्स । पजालिऊण भुवणं को उज्जोयं कुणइ मइमं? ।। २९०॥ इय सविणयं सपणयं गुणदोसवियारसारमवि भणियं । अवगभिऊण राया चलिओ अणुतावतत्तंगो॥ २९१॥ न तहा तवेइ तवणो न जलियजलणो 8/न विज्जुनिग्याओ । जह अवियारियकजं विसंवयंतं तवई गंतुं ॥ २९२ ॥ तत्तो अणुगम्मतो स मंतिसुद्धंतपसिपवरेहिं । कहकहवि अणेच्छंतोवि तुरयमारोविओ तेहिं ॥ २९३ ॥ दितो दुक्खं सेवयजणस्स धम्मुज्जुयाण वेरग्गं । सोयंसुवारि-16 धोयाणणाहिं तरुणीहिं दीसंतो ॥ २९४ ॥ वारियगीयाउज्जो वज्जियधयछत्तचमरचिंधोहो । निग्गंतूण, धराओ पत्तो नंददाणवणासन्ने ॥ २९५ ॥ अलहंतेणोवायं निवारणे तस्स अन्नमह भणियं । गयसेट्ठिणा जह इहं उजाणे देवदेवस्स ॥२९॥ सयलजयमलिमणिणो मंदिरमुद्दामसुंदरागारं । ता तत्थं देव! पूयणवंदणगाई खणं कुणह ॥ २९७ ॥ एत्थेव अमियः | तेओ णामेण मुणीसरो विउलणाणो । गंभीरिमजियजलही दूरोसारिसयलदोसो ॥ २९८ ॥ ता. तंपि खणं पेच्छह तस्सुवएसेण होहिंइ महंतं । कल्लाणमेस जं सबसत्तहियकरणतलिच्छो ॥ २९९ ॥ एवंति मन्निऊणं विहियं जिणपूयणं सुविच्छडु ।। तह बंदणं जहोयिय विहिणा हरिसाउलमणेण ॥ ३०० ॥ तत्तो यगुरुसमीवं गओ कओ सविणयं पयपणामो । उवविट्ठोदा उचिए आसणम्मि तो मणियवुत्तंतो॥३०१॥ भणइ गुरू भवजलनिही इविओगाइवाडवालीढो । एस दरंतो पावोर जरमरणजलाउलो राय! ॥ ३०२ ॥ नारयतिरियनरामरगईसु सवत्थ एत्थ दुक्खाई। पुणरुत्तमणंताई पत्ताई सबजीवेहिं ॥ ३०३ ॥ एयस्स हेउभूया चउरो कोहाइविसहरा घोरा । कुद्धेहिं जेहिं जणो अयाणगो हिययमग्गम्मि ॥ ३०४ ॥ दट्ठो कजाकज जुत्ताजुत्तं हियाहियं मूढो । वत्तबमवत्तवं सारासारं.ण याणेइ ।। ३०५ ॥ किं बहुणा. तबसओ तं तं आयरइ
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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