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________________ S श्रीउपदे शपदे शङ्खकलावतीनिदशेनम् जली होउं । सोयभररुद्धका ॥३४८॥ २१७॥ सो देवि! वरमजाओ पावर वयसणओ वरओ पहुव USASISESSAIRASLOC है सुबइ तूररवो न जणरवो किंतु रन्नमेयंति । सुमिणमिणं मइमोहो किमिंदजालं कहसु सच्चं? ॥२१४ ॥ इय संभमप्पलावं देविं वियलत्तमागयं दह । निकरुणोवि सकरुणो ण तरइ पडिउत्तरं दाउं ॥ २१५॥ ओयरिय रहा तत्तो पुरओ कयकरजली होउं । सोयभररुद्धकंठो रुयमाणो भणिउमारद्धो॥ २१६ ॥ हद्धी धिरत्थु पावो देवि! अहं सच्चमेव निकरुणो। जेणेरिसम्मि कम्मे निओइओ हयकयंतेण ॥ २१७॥ सो देवि! वरमजाओ पावयरो पावचेडिओ दुट्ठो। जो एयारिसवित्तिं धारेई जीविडं पुरिसो॥ २१८॥ जुज्झइ जणएण समं विणिवायइ भायरं सिणिद्धपि । सेवयसुणओ वरओ पहुवयणा विसइ जलणम्मि ॥ २१९ ॥ ओयरिय रहवराओ ता निवससु एत्थ सालछायाए । एसो रायाएसो अन्नं भाणेज ण पारेमि ।। २२०॥ विज्जुनिवायम्भहियं तबयणं सुणिय मुणिय तत्तत्थं । ओयरमाणी मुच्छावसेण धरणीगया देवी ॥२२१॥ इयरोवि रहं घेत्तुं रुयमाणो चेव पडिगओ नयरं । पत्ता कमेण कहकहवि चेयणं अह पुणो देवी ॥ २२२॥ जा चिट्ठइ रुयमाणी अइकरुणं कुलहरस्स समरिऊण । ता पुवनिउत्ताओ पत्ताओ पाणविलयाओ॥ २२३ ॥ ताहिं च रक्खसीहिं करसंठियकत्तियाकरालाहिं । णिकारणकोउन्भडभिउडीभीसणणिडालाहिं ॥ २२४ ॥ हा दुढे! दुहचेढे! ण याणसी माणि निवइलच्छि । जं पडिकूलं वसि रणो णेहाउलस्सावि ॥ २२५ ॥ ता सहसु संपयं दुक्कयस्स फलमेरिसाई फरुसाई। वयणाई भासिऊणं छिपणं सहसा भुयाण जुयं ॥२२६॥ केऊरंकणयभूसणविराइयं निवडियं धरावलए। कहकहवि लद्धसन्ना विलावमिय काउमारद्धा ॥ २२७ ॥ हा दिव! कीस मज्झं एवं कुविओ सि निग्घिणो होउं । जेण अतकियमेवं करेसि अइदारुणं डंडं? ॥ २२८॥ किं णत्थि तुज्झ गेहे मए समा कावि बालिया पाव। जेण ण याणसिऽणि? हय-! ॐॐॐॐ ॥३४८॥ *
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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