SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 813
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ****GAR धीरा जह परगुणलेसभणणेण ॥ १३८ ॥ अञ्चन्भुयगुणरयणेहिं पूरियं वरनिहिव देवस्स । चरियं पमोयकारणमिह कस्सा न होड दीसंतं? ॥१३९ ॥ ससिणेहलोयणेहिं रण्णा कुमरो पयंपिओ एवं । सुंदर! अईव सुयणो सि घेप्पसे जं मम गुणेहिं॥ १४०॥ अहवा ॥ घेप्पंति सुहेणं चिय सहावविमलाई सुयणहिययाई। पडिविविज्जइ अप्पा किल केण ण दप्पणुच्छंगे? ॥१४१॥ जं विजयरायतणओ तेण तए एरिसेण होयबं । सहयारपायवाओ ॥ १४२ ॥ एत्यंतरे पढियमवसरपाढएण जहा ॥ "अह सो सक्करचुन्नमज्झिगयपुन्नु विलोट्टइ, खंडुम्मीसियसत्तुकुंडि | ६) घयवाहु पलोदृइ । वाउज्जायं कढियदुद्धि लहसि हत्थह पडियं, जं दइविं सज्जणकुडुंव एरिस निम्मवियं ॥ कहिं गुणसा यह संसपह, विजयराउ कहिं संवसइ । दीवंतरह वि रयणु विहिजोग्गि जोग्गुवनिवसइ ॥” तओ। तस्सावसरपयट्टिय पाढस्स पसायमागया सये। सक्कारमइमहंत कुणंति पुलयंकियसरीरा ॥ १४३॥ विउससहासमुचियसंकहाहिं ठाऊण | कित्तियंपि खणं । पच्छा पसन्नहियया नियनियगेहेसु संपत्ता ॥ १४४॥ दाणगहणुज्जयाणं निच्चं वटुंतनिद्धभणिईण । | अण्णोणं चित्तणुपत्तगाण तेसिं दिणाण गमे ॥ १४५ ॥ केवइयाण विवाहो पारद्धो सुंदरम्मि दिवसम्मि । उच्चट्ठाणगएK गहेसु विमलम्मि गयणयले ॥ १४६ ॥ वजंतचित्ततूरं तूररवारद्धवारवहुनढें । नट्टायट्टियलोयं लोयमणोनयणकयतोसं ६॥ १४७ ॥ तोसभरमिलियकामिणिमुहपंकयराइयंगणाभोयं । भोयणविभत्तिभावियणायरणरणारिकयवण्णं ॥ १४८॥ वनंतवित्तचारणमणोरहाईयदाणरमणीयं । रमणिगिजंतसुतारमहुरवरमंगलसमिद्धं ॥१४९ ॥ मंगलसमिद्धकयविवि.] हकोऽयं जणियसयणपरितोसं । परितोसबहुलवरवहुकीरंतमिलतकरकमलं॥ १५० ॥ पुरपवरहिययहरणं वढियपणयं अदा ASHARAOSALISEO SEO SEAGAISESHO +CHAMS
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy