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________________ * * * क्खं वत्तं देसंतरेहिं अंतरियं । पञ्चक्खुवलद्धं पिव वजरइ सपच्चयमिमंति ॥ १०८॥ अहवा । दूरनिहित्तपि निहिं तिणवलिममोत्ययाए भूमीए । णयणेहिं अपेच्छंता कुसला बुद्धीए पेच्छंति ॥ १०८ ॥ ततो रन्ना सेन्नं संजत्तिपरं निवारियं शक्ति । पच्चोणीए णिउत्तो मंती तो धीधणो तीए ॥ १०९ ॥ नगराक्खगलोगो भणिओ नगरं जहायरपरेहिं । सभितरबाहिरियं पयट्टमहूसवं कज्जं ॥ ११०॥ तह चारगसोहणयं धवलाई देउलाई सयलाई। वारेह सुंकसालं जहा न सुंकं गहेययं ॥ १११ ॥ सवो य पगइवग्गो मालियतंवोलियाइओ वच्चो । नियवावारपरेहिं होयवं सबहा इण्हिं ॥ ११२ ॥ उन्भेह तोरणाई जन्नावासे नहंतए कुणह । गयतुरयवसहकरभाइघाससंपायणं चेव ॥ ११३॥ इय नरवइणाऽऽणत्ता पगया सयंपिते जहाजुत्तं । रायावि पमोयभरं अउधमणुभविउमारद्धो ॥११४॥ अह धीधणेण धणियं धुणाविओ मत्थयं समत्थोवि। जयसेणसेन्नलोओ समाणसम्माणकरणेण ॥ ११५ ॥ आवासिओ जहोचियठाणे जाया पुरी ससंतोसा । कुमरो पणओ रन्नो सीसेण महीविलग्गेण ॥ ११६ ॥ आलिंगिओ ससंभममापुट्ठो सागयं पुहइपहुणो । पवरासणे णिसन्नो सपरियणो स बहुगोरविओ ॥ ११७ ॥ तेणावि मंतिपमुहो परिवारो समुचियाए णीईए। कयसम्माणो विहिओ तेसु सुहासणनिविटेसु ॥ ११८ ॥ एत्यंतरे विरंगो कुमारमंती पसंतमुहकंती । भणइ बहु अम्हपहुणो हरियं हिययं तुह गुणेहिं ॥ ११९ ॥ तह कवि सरूवं वो सिटुं दत्तेण वणियपुत्तेण । जह टंकुक्किन्नं पिव ठियममलं चित्तभित्तीए ॥ १२० ॥ ताएण तुम्ह एवं | संदिदं णेहनिन्भरं धीरे । तुह गुणनिहिणो दूरट्ठिया हु किं गउरवं कुणिमो? ॥ १२१॥ का तस्स छेयया का उदारया को गुणेसु अणुराओ। वियरइ जो ण गुणीणं पसत्यवत्थु सुइटैपि ? ॥ १२२ ॥ ता गुरुगुणाणुराया लायन्नकलाकलाव ****
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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