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________________ श्रीउपदे- शपदे दढं पावपरिहारी ॥११॥ सो पुण उदारयाए निच्चं असणाइयं मणुन्नपि । कस्सइविस्साणिऊण उचियं उवभुत्तवं नियमा रतिसुन्द६ ॥१२॥ अह अन्नदिणे दिट्ठो उस्सप्पिणिनवमजिणवरो तेण । विंदुजाणे पडिमाए संठिओ मेरुथिरमुत्ती ॥१॥ दद्ण तस्स-8 र्यादीनामुरूवं उवसमलचिंछ च चारुतवचरणं । असमप्पमोयवसओ पढिउमिणं सो समाढत्तो ॥ १४ ॥ “वपु सुंदर अंगविन्नासु कट त्तरभवमणहर तेयसिरि कटरि कटरि लायण्णुववणह अइउवसमु लोयणहं अइय अइयं वलि धम्मचरणहं कर हुरि नयणई रंध- वर्णनम्कणि अज्ज हु अजं सुसेउ वलि वलि जोयहु चोज्ज करुइ हु परमप्पा देउ ॥१॥” इय उल्लसंतसद्धो थोउमसीमंतभत्तिराएण । बहुमाणमुबहतो जिणम्मि एसो गिहं पत्तो ॥ १५ ॥ कुसलाणुबंधिकम्मोदएण अह तस्स भोयणावसरे । पत्तो तिलोयनाहो भिक्खट्ठा गिहदुवारम्मि ॥ १६ ॥ तं पेच्छिऊण बंदी आणंदरसोवरुद्धवंनियमो । पडिलाभेइ जिणिदं परिवेसियकामगुणिएण ॥ १७ ॥चिंतइ य अहं धन्नो सफलं मे अज जीवियं अज । जे भयवं दाणमिणं पडिच्छए पाणिपुडएणं ॥ १८ ॥ एत्थंतरम्मि गयणे उच्छलिओ देवदुंदुहिनिनाओ। घोसिंति अहो दाणं अहो महादाणमिइ विबुहा ॥ १९॥ जणजणियमहच्छेरं गंधोदयपुप्फवरिसणं जायं । उक्कोसा वसुहारा पडिया य घरंगणे सहसा ॥२०॥ अविय । नरनरवइसुरअसुरा बंदित्तं बंदिणोवि से पत्ता । किंवा सुपत्तदाणा जायइ अच्चब्भुयं न जए?- ॥ २१॥ इय पयर्ड माहप्पं पेच्छंतो विसुद्धदाणधम्मस्स । भेत्तूण कम्मगंठिं दंसणसड्डो इमो जाओ॥ २२॥ विणिओइऊण वित्तं पवित्तपत्तेसु दूरमहुरा सो । चइऊण पूइदेहं पत्तो पढमं अमरगेहं ॥ २३ ॥ भोत्तूण चिरं भोए सुरसुंदरिविसरवट्टियामोहे । चविउमम- 2 ॥३३५॥ रालयाए इहेव विणयंधरो जाओ ॥ २४ ॥ जाओ जहत्थतामो इमेण जाएण रयणसारिब्भो । जणणीविय पुन्नजसा
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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