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________________ श्रीउपदे- याणं सर्व चिय संदरं होतं ॥४०॥ इण्हि तु संपओगे लोगे गरहा कुलस्स मालिन्नं । दुग्गइगमणं दारुणदुहाई बहसो श्रीगुणसुशपदे परे लोगे ॥४१॥ ता परिभावसु सम्मं संपइ कालोचियं महासत्त! परिणामसुंदरं जं वियारसारा जओ विउसा ॥४२॥5 पिता ॥ ४२ ॥ सन्दरीचरिनाएण जं न सिद्धं को सफलो खलु तयत्थ मन्नाओ?। निहओ चडप्फडतो अहिययरं फुसणं लहइ ॥४३॥ एमाइवय तम्॥३३२॥ णरयणारंजियचित्तेण चिंतियं बडुणा । विन्नाणबुद्धिनिउणा सच्चं गुणसुंदरी एसा ॥४४॥ अइवच्छला य मझ उवइसइ सिणेहसारमिय जेण । सर्व, पउणोवाओ कज्जस्स मए ण विण्णाओ॥४५॥ नवरं एयनिमित्तं कओ मए एत्तिओ परि-5 किलेसो। ता कह मुयामि एयं पतं भत्तंव अइछुहिओ ॥४६॥ इय चिंतिय सा भणिया सुंदरि! सबंपि अवितहं भणसि । किंतु न तरामि धरिउ खणंपि पाणे तुह विओए॥४७॥ जं जीविओ म्हि सुंदरि ! कालं किर एत्तियं तुह | विओए । तं सुयणु! संगमासादिवोसहिसंपओगेण ॥४८॥ मइलिज्जंतु कुलाई होउ परत्थवि दुरंतदुक्खाई। परिनिव वेहि सुंदरि! तवियं विरहग्गिणा अंगं ॥४९॥णाऊण णिच्छयं से भणियं गुणसुंदरीइ जइ एवं । जं सुंदर! तुज्झ |हियं मएवि तं चेव कायचं ॥५०॥ जइ मज्झ संपओगा होइ सुहं सुहय! उत्तमं तुज्झ । पल्लीवि सग्गतुल्ला ता पडिहा18| सइ फुडं मज्झ ॥५१॥ किंतु मए पारद्धो साहेउं दुलहो महामंतो। पडिवन्नं च तयत्थं मासे बंभवयं चउरो ॥५२॥ समइच्छियं तयद्धं मासदुगं सेसयं पुणो अत्थि । सहियं च तुमे बहुयं ता विसहसु थेवमेयंपि ॥ ५३॥ तत्थ पुण एस कप्पो पुरिसो सबोवि भाइपिइकप्पो । दट्ठयो अवियप्पं भुजो भोगंगमवियप्पं ॥५४ ॥ भणियं च तेण सुंदरि! सिज्झइ ॥३३२॥ १ ग. फंसण। OSES OSAS
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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