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________________ नसारयाए तेणावि गिहं समाणीओ ॥ ७५ ॥ भणिओ या पहसंगमसालंस्सव बहुजणसुहयारिचारुचरियस्स । हा कहमिमा अवस्था बढइ अइदारुणा भवओ ? ॥ ७६ ॥ अहवा । गरुयाणं चिय भुवणम्मि आवया न उण हुंति लहुयाण । गहकहोलगलत्था ससिसूराणं ण ताराणं ॥ ७७ ॥ ता होसु धीरचित्तो मा वह सुमिणे विसायलेसंपि । कारेमि निरुयदेहं | मित्तं वित्तेण बहुणावि ॥ ७८ ॥ एवमणुसट्ठिपुषं पडियरिओ सम्ममोसहाईहिं । जाओ य निरुयकाओ सुमित्तसामग्गिसु | कहिं ॥ ७९ ॥ सोजण्णमणण्णसमं तेसिं दद्रूण लोयणो धणियं । लज्जामउलियणयणो झायइ सययं निराणंदो ॥ ८० ॥ भदं सजणचंदणतरूण सवंगचंगसंगाणं । डज्झताणवि जेसिं गंधो भुवणं सुहावेइ ॥ ८१ ॥ अवयारसयाणिवि पहुसंति तणुयंपि णेगमुवयारं । सुण्णहियया सहियया व हुंति सुयणा न नजंति ॥ ८२ ॥ एयारिसाणवि मए ववहरियं निग्धिणं अणजेण । मइ पुण पावेवि इमाण माणसं णेहपडिहत्थं ॥ ८३ ॥ तइयच्चिय जलहिजले निहणमहं पाविओ वरं होतो । नो कयपावो एएसिं नयणविसयम्मि जीवंतो ॥ ८४ ॥ इच्चाइ चिंतयंतो भणिओ धम्मेण पुन्नकम्मेण । चिंतामिलाणवयणो किं चिट्ठसि मित्त ! तुममेवं ॥ ८५ ॥ किं अत्यहाणिजणयं सयणविओगुग्भवं च तुह दुक्खं । किं वावि वाहिविहियं, सुणाहि णणु एत्थ परमत्थं ॥ ८६ ॥ होही पुणोवि विहवो मिलिही सयणोवि जीवमाणस्स । वाहीवि न तिट्ठाही चिरं सहाए मइ धरंते ॥ ८७ ॥ गिम्हुण्हसोसियाणवि पुणो सिरी होइ नईतलायाणं । झीणोवि ससी कइवयदिणेहिं भुज्जो हवइ पुन्नो ॥ ८८ ॥ झडिऊण पल्लविल्ला पुणोवि जायंति तरुवरा तुरियं । धीराणवि धरिद्धी गयावि न हु दुलहा एवं ॥ ८९ ॥ अन्नं च । सघं चिय सुहदुक्खं पुषज्जियसुकयदुक्कयविवाया । जायइ जियाण जं ता को खेओ
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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