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________________ श्रीउपदे- दोसो एयस्स पावदेहस्स । इय निग्गुणेण इमिणा मोहिज्जइ जं गुणड्डोवि? ॥ ११३ ॥ एवं विरागजणणिं सोउं तद्देसणं रति सुन्दशपदे मणागंपि । न हि भाविओ नरिंदो घणंबुणा मुग्गसेलोच ॥ ११४ ॥ चिंतइ य अपरिकम्मा एसा अंगे विरागयं पत्ता। द रीचरि15. होही पुणोवि सत्था णूणं नियमे समत्तम्मि ॥ ११५॥ मा कुणसु सुयणु! खेयं पुजउ नियमो सुहेण तुह एसो । इय तम्॥२४॥ जंपिऊण हसिरो तो राया पडिगओ तत्तो ॥११६॥ अवहिम्मि पुणो पुन्ने वुत्ता भुत्तुत्तरे महिंदेण । उकंठिओम्हि सुंदरि! 8 वाढं तुह संगमे अज ॥ ११७ ॥ तो भणियं देवीए सच्चयमाहाणयं इमं जायं । इयरस्स मरणसमओ मग्गिजइ पंचहिं सएहिं ॥ ११८ ॥ अज मए वहुकाला परिभुत्तं निद्धमणहरं भत्तं । तेण सरीरे संपइ वट्टइ हल्लोहलो अउलो ॥ ११९ ॥ फुडइ सिरं वियणाए अइरुंदा सूलवेयणा तुंदे । तुटूंतिव संधीबंधणाणि सवाणि समकालं ॥ १२०॥ इयदा णं भणिरीए 8 मयणहलमलक्खियं कयं वयणे । वमियं च तेण सहसा तक्खणभुत्तं सयलभत्तं ॥ १२१॥ भणियं च पेच्छ नरवइ! एयसरीरस्स असुइरूवत्तं । तविहमणुन्नमन्नं खणेण असुईकयं जेण ॥१२२॥ अन्नं च सुहय! साहसु अइसयछुहिओवि कोवि किं एयं । इच्छइ पुरिसो भोत्तुं तुम्हारिसवालिसं मोत्तुं ॥ १२३ ॥ जंपइ पुहइपई तो सुंदरी अह बालिसो कहं होमि?। 8 कह वा एरिसभत्तं भोत्तुं इच्छामि पसयच्छि! ॥ १२४ ॥ इयरी भणइ वियक्खण ! पयर्ड एयपि किं ण लक्खेसि ? । पर8 परिभुत्तकलत्तं एत्तोवि विहीणयं होइ ॥ १२५ ॥ सच्चं सुंदरि! एयं इह परलोए विरुद्धमच्चतं । रागाइरेगओऽहं तहावि है तुह संगमे लुद्धो ॥ १२६ ॥ इयजंपिरो नरिंदो भणिओ तीएवि मुक्कनीसासं । एत्थ निहीणे देहे किं रागनिबंधणं तुज्झ? 8 ॥३२४॥ ॥ १२७ ॥ भन्नइ निवेण ताहे सुंदरि! तवसोसिएवि तव देहे । नयणंबुरुहस्स फुडं मोल्लं पुहवीवि नो होइ ॥ १२८॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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