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________________ श्रीउपदे शपदे माणिविझंतपलायमाणपाइक। खित्तं तेण रिउवलं केसरिणा हरिणजूहंव ॥८१॥ ता उडिओ सुरुट्ठो महिंदसीहोवि जीवि रतिसुन्ददयनिरीहो । जायं च वणगयाणव तेर्सि दोण्हवि चिरं समरं ॥ ८२॥ कहकहवि गयाघायासाइयमुच्छो छलं लहेऊण । रीचरिभवियवयानिओया बद्धो चंदो महिंदेण ॥ ८३ ॥ भो साहु साहु सुपुरिस! निबडिओ अज ते सुहडवाओ । इयजंपिरेण ॥३२३॥ 8 मंतिस्स अप्पिओ जीयरक्खत्थं ॥ ८४ ॥ गंतूण तओ तुरियं पलायमाणम्मि चंदसेन्नम्मि । हाहारवं कुणंती गहिया रइ-12 है सुंदरी तेण ॥ ८५॥ मोयाविऊण चंदं रइसुंदरिलाभवट्टियाणंदो । पत्तो नियम्मि नयरे भणिऊण तई समारूढो ॥८६॥ सुंदरि! सुयमेत्ताहे अणुराओ मे तुमम्मि संजाओ। तबसएण य विहिओ संरंभो एत्तिओ एस ॥ ८७॥ ता एस पयासतरू साहल्लं लहउ तुह पसाएण । पडिवज्ज सुयणु! संपइ कुरुजणवयसामिसीलत्तं ॥८८॥ तो चिंतइ चंदपिया धिरत्थु संसारविलसियं पावं । रूवंपि मज्झ एवं अणत्थमूलं जओ जायं ॥ ८९॥ जंकिर एयनिमित्तं संपत्तो पाणसंसयं दइओ। एसोवि मुक्कलज्जो इच्छइ एवं नरयवायं ॥९०॥ अवियाणिय मह चित्तं कामग्गहमोहिएण एएण । हा कह कओ निरत्थो संहारो भूरिसत्ताण? ॥ ९१॥ किं वहुणा ते धन्ना संपत्ता मुत्तिमुत्तमं जे उ । जम्हा ते जीवाणं न कारणं दुहलवस्सावि C॥९२॥ कह नाम रक्खियवं सीलं एयाओ पावचरियाओ । अहवावि कालहरणं भणियं असुहस्स नीईए ॥ ९३॥ ता सामपुवर्ग चिय कालविलम्ब इमं विहावेमि । सामं विणा ण तीरइ वारिउमेसो जओ लुद्धो ॥ ९४ ॥ इय भाविऊण पभणइ कलिया गाढाणुरागया तुज्झ । पत्थेमि अओ किंचि जइ न कुणसि पत्थणा भंग ॥ ९५॥ भणइ निवो जीयस्सवि ||5| |पहवसि तं तहवि जंपसि किमेवं? । जो देइ सिरं सुंदरि! सो किं जाइज्जए निउणं? ॥९६॥ अहवा तिलोयमंदिरमज्झं OSLOSESTIGASESORES RESEOSKOG
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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