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________________ श्रीउपदे- शपदे X ॥३२३॥ णिविज्झंतपलायमाणपाइक्कं । खित्तं तेण रिउवलं केसरिणा हरिणजूहंव ॥८१॥ ता उडिओ सुरुट्ठो महिंदसीहोवि जीवि रतिसुन्दयनिरीहो । जायं च वणगयाणव तेसिं दोण्हवि चिरं समरं ॥ ८२॥ कहकहवि गयाघायासाइयमुच्छो छलं लहेऊण ।। रीचरिभवियवयानिओया वद्धो चंदो महिंदेण ॥ ८३ ॥ भो साहु साहु सुपुरिस! निबडिओ अज ते सुहडवाओ । इयजंपिरेण तम्मंतिस्स अप्पिओ जीयरक्खत्थं ॥ ८४ ॥ गंतूण तओ तुरियं पलायमाणम्मि चंदसेन्नम्मि । हाहारवं कुणंती गहिया रइद सुंदरी तेण ॥ ८५॥ मोयाविऊण चंदं रइसुंदरिलाभवट्टियाणंदो। पत्तो नियम्मि नयरे भणिऊण तई समारूढो ॥८६॥ र सुंदरि! सुयमेत्ताहे अणुराओ मे तुमम्मि संजाओ। तबसएण य विहिओ संरंभो एत्तिओ एस ॥ ८७ ॥ ता एस पयास तरू साहलं लहज तुह पसाएण । पडिवज्ज सुयणु! संपइ कुरुजणवयसामिसीलत्तं ॥८८॥ तो चिंतइ चंदपिया धिरत्थु है। संसारविलसियं पावं । रूबंपि मज्झ एवं अणत्थमूलं जओ जायं ॥ ८९॥ जं किर एयनिमित्तं संपत्तो पाणसंसयं दइओ। # एसोवि मुक्कलज्जो इच्छइ एवं नरयवायं ॥१०॥ अवियाणिय मह चित्तं कामग्गहमोहिएण एएण। हा कह कओ निरत्थो संहारो भूरिसत्ताण? ॥ ९१॥ किं बहुणा ते धन्ना संपत्ता मुत्तिमुत्तमं जे उ । जम्हा ते जीवाणं न कारणं दुहलवस्सावि ॥९२ ॥ कह नाम रक्खियवं सीलं एयाओ पावचरियाओ । अहवावि कालहरणं भणियं असुहस्स नीईए ॥ ९३ ॥ तासामपुवगं चिय कालविलम्ब इमं विहावेमि । सामं विणा ण तीरइ वारिउमेसो जओ लुद्धो॥ ९४ ॥ इय भाविऊण पभणइ कलिया गाढाणुरागया तुज्झ । पत्थेमि अओ किंचि जइ न कुणसि पत्थणा भंग ॥ ९५ ॥ भणइ निवो जीयस्सवि ॥३२३ ॥ पहवसि तं तहवि जंपसि किमेवं? । जो देइ सिरं सुंदरि! सो किं जाइजए निउणं? ॥ ९६ ॥ अहवा तिलोयमंदिरमझ-15 कालहर) म अओमाण तीर
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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