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________________ श्रीउपदेशपदे ॥ २७७ ॥ ॥ १७५ ॥ तो सामिमारणुप्पन्नतिबकोहाए तस्स भजाए। असिएण मारिया सा बंधुमईए नियंतीए ॥ १७६ ॥ घरसारं नरवइणा गहियं सुण्हा य चारगे धरिया । इयरी य पूइया गुरुजणेण सबं च तं दिहं ॥ १७७ ॥ भणियं च अहो पावा हिंसा जीवाण एरिसं चरियं । तत्तो होइ दुहाणं निहाणमिह परभवे चैव ॥ १७८ ॥ लद्धावसराए तओ भणियं सोमाए विरइमओ । गहिओ मएवि धम्मो किं कीरउ अहव मुंचर सो ॥ १७९ ॥ पुत्ति ! न मोत्तबो ता इण्हि तो किंपि जाव गच्छति । दिट्ठो विणद्ववहणो अलियपलावी विहम्मतो ॥ १८० ॥ वयणेहिं जणाण सुनिडुरेहिं नाइत्तओ जहा एसो । जाओ तह भन्नइ वसंतपुरनामगे नयरे ॥ १८१ ॥ पवहण वाणिज्जपरो सुहंकरो आसि नाम नायत्तो । सयलगिहकज्जसज्जा भज्जा मंदोयरी तस्स ॥ १८२ ॥ ताण सुया संजाया सुकुमालतणू परूढसोहग्गा । नामेण संखिणी खीणदेहदोसा कमलवयणा ॥ १८३ ॥ सो अन्नया भरित्ता इहदेससमुग्भवाण वत्थूण । दिवाणं पवहणाई जलनिहिपरपारमणुपत्तो ॥ १८४ ॥ विहिओ ववहारो आयरेण जाओ बहू य धणलाभो । पडिइंतस्स विलोट्टे पुण्णम्मि महण्णवस्संतो ॥ १८५ ॥ कहवि जलसेलसिंगस्स घट्टणेणं विहाडियं वहणं । मोत्तियपवालसंखाइयाणि दबाणि बुड्डाणि ॥ १८६ ॥ सो लद्धफलगखंडो तडम्मि भियगेण सममहोइन्नो । एगम्मि जलहिकूलम्मि गामनगराइसकिण्णे ॥ १८७ ॥ तत्थवि विहिणा अइनिडुरेण छिद्दे छलंतरपरेण । मंदीकओ सुतिबं वाहिवियारं जणेऊण ॥ १८८ ॥ एगंतभत्तिमंतेण तेण भियगेण ओसहाईहिं । पडियरिओ तह पवणो पुबंव जहा स संजाओ ॥ १८९ ॥ तुट्टेण तेण धूया तस्स विदिन्ना तओ य तेणावि । सक्खिजणविप्पहीणो ववहारो अलियगो होइ ॥ १९० ॥ को एत्थ ममं सक्खी भणिए भियगेण जीवगा नाम । जे संति एत्थ पक्खी श्रीमतीसोमाहर णप्र० ॥ २७७ ॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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