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________________ श्रीउपदे- शपदे दर्शनम्। SSHOREORDERSBEREICHE STOCK डभट्टेण मूलदेवो समजिणियरजो। विण्णायडम्मि नयरे समागओ तत्थ लहु चेव ॥ ९५॥ दिवो राया, दिण्णो पहा६ णगामो विसजिओ तत्तो । मह नयणगोयरे जह न एहि तह कुणसु इय भणिओ ॥ ९६॥ अह अन्नया कयाइ उज्जे- णीओ धणज्जणनिमित्तं । देसंतरं पवण्णो अयलो बहुलोयपरियरिओ॥ ९७॥ तत्थोवजियबहुविहवभरियसगडो य दिवजोएण । विनायडम्मि पत्तो सुकं पाडेउमारद्धो ॥९८॥ मंजिट्ठाइकयाणंतरेसु गोवियमहग्घबहुरूवो । णाओ सुंकियलोएण दंसिओ नरवइस्स तओ ॥ ९९ ॥ तो तेण संभमुभंतलोयणेणं पलोइओ अयलो। कह एत्थ सत्थवाहो अबो । अञ्चन्भुयं एयं ॥१००॥ परियाणेसि महायस! को हं पडिभणइ देव! केण तुम। नो नजसि सरयससंककंतकित्तीभरि-8 यभवणो ? ॥१०१॥ साहियनियवुत्तंतो नरनाहो दुक्कर करेऊण । सक्कारमस्स समए तं तुट्ठमणं विसजेइ ॥१०२॥ पत्तो उजेणीए अयलो मिलिओ य बंधवजणस्स । कहिया य मूलदेवेण जा कया तस्स पडिवत्ती॥ १०३ ॥ अह विनायड नयरे चोरेणेगेण चउरचरिएण । पइदिवसं ईसरमंदिरेसु पाडिजए खत्तं ॥ १०४ ॥ दक्खो वि य आरक्खियलोओ पयॐ ओवि तं न लक्खेइ । नरवइणो तेण निवेइयं च नो देव ! दीसइ सो॥ १०५॥ णूणमदिस्सीकरणं तेणं विहियं सुरो ६ व खयरो वा । सो होज अन्नहा कह केणावि कहिंपि नो दिवो ॥ १०६॥ तो नीलपडावरणो पर्यडअसिदंडमंडियकसे रग्गो । सयमेव मूलदेवो पढमपवेसे विणिक्खंतो ॥१०७॥ देवलपवासहासुन्नगेहउजाणमाइठाणेसु । उवलढुं पारद्धो 8 बहुएहिं सो उवाएहिं ॥ १०८॥ अह एगाइ पवाए रयणीए मज्झभागसमयम्मि । निब्भरतिमिरभरवसा निरुद्धदिहिप्पयारम्मि ॥ १०९॥ सुत्तम्मि सहालोए कइयववसओ य मूलदेवो वि । तत्थेव संपयट्टो सोउं अह आगओ. तत्थ. * **
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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