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________________ BACHCRAGNMCAMERGENCY चित्तं मन्झ अविकलं जायं । णियदिद्विपयाणेणाणुग्गहमेत्तो खणं कुणह ॥११॥ बीएण पुण पयंपियमेगावि मए न निम्मिया रेहा । चित्तपरिकम्मजोगा भूमिच्चिय केवला रइया ॥ १२॥ दिट्ठो सहाविभागो रन्ना विमलेण चित्तिओ तोसो। तो तस्स समुप्पन्नो कयाय पूया समुचियत्ति ॥१३॥ विक्खिविऊणं जवणियमियरसहाभागमिह पलोइंति । जा नरनाहो चित्तियभित्तिविभागस्स संकमओ॥ १४॥ तत्तो रम्मसरूवा सा भित्ती ज्झत्ति निवइणा दिद्वा । चित्तयरवयगविहडणमभिसंकेतो लहु विलक्खो ॥ १५ ॥ जाओ निवो पयंपइ अम्हे वियारिया किमेवं ते ? । ण हु देव! संक-18 मातो चित्तस्स इमेरिसं जायं ॥ १६ ॥ संकासंकुलियमणोवि तं जवणियमवणियं जहा कुणइ । ता पेच्छइ भित्तिं चिय निवई ससिनिम्मलालोयं ॥ १७ ॥ विष्फुरियविम्हयमुहो पुच्छइ राया तए न किं विहियं । चित्तं एत्तियकालो जं लग्गो भूमिमेत्तम्मि? ॥ १८॥ देव ! न भूमिविसुद्धिं विणेह चित्तं कयंपि रमणिज । ओभावइ वनगा जं थिरत्तसुद्धीओ न लहति ॥ १९॥ अबो चित्तगरसिरोमणी इमो अत्थि एरिसो अन्नो। भणिओ अच्छउ एसा इमंपि चित्तं इमं होही ॥ २०॥ संकमवसाउ अहियं निभालणिज जओ कुरुवंपि । मुहमादरिसस्स तले अहियं सोहं समुबहइ ॥२१॥ सकारो अइगरुओ तह विहिओ जह स जावजीवपि । नियबंधुलोयसहिओ परमं सुहिभावमणुपत्तो ॥ २२ ॥ अथोलिंगितगाथाक्षरार्थ:__ 'दूयापुच्छण'त्ति दूतस्य पृच्छा समभूद् राज्ञो महावलस्य, यथा किं वस्तु मम नास्ति ? स आह-देव ! चित्रसभा नास्ति । तदनन्तरमेव द्वयोश्चित्रकरयोरादेशो दत्तः 'णिम्मवण'त्ति निर्मापना विपयः। तदन्वेव प्रधानचित्रकरवहुमानःप्रवृत्तः३६२।१
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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