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________________ श्रीउपदेशपदे ॥ २११ ॥ 1 णामिह पुण्णसारोविकमसारो य दोण्णि वणियसुया । णिहिपरतीरधणागम तह सुहिणो पढमपक्खम्मि दाणुवभोगा णिहिलाभओ दढं अविगलाउ एक्कस्स । परतीर किलेसागमला भाओ एवं बीयस्स ॥३५३॥ | रायसवणम्मि पुच्छा णिवेयणं अवितहं दुविहंपि । दइवेयरसंजुत्ता पवायविण्णासणा रण्णो ॥ ३५४ ॥३॥ एगणिमंतणमविगलसाहण जोगोऽकिलेसओ चेव । भोगोवि य एयस्स उ एवं चिय दइवजोगेण ॥ ३५५॥ अण्णस्स वच्चओ खलु भोगम्मिवि पुरिसगारभावाओ । रायसुयहारतुट्टणरुयणे तप्पोयणाभोओ ॥ ३५६ ॥ इस खिइपइडियनगरं नगतुंगचंगसुरभुवणं । अइगरुयविपक्खमरट्टकुट्टणुप्पन्न पुन्नजसो ॥ १ ॥ पुन्नजसो नाम निवोत्थासि पिया य तस्स सुहगंगी । सो रायन्नजणोच्चियववसायपरो गमइ कालं ॥ २ ॥ अह तत्थ धणडुसुओ पुरम्मि नामेण पुन्नसारोति । बीओ विक्कमसारो विक्कमवणिणो सुओ आसि ॥ ३ ॥ अहिगयकलाकलावा तारुण्णमणण्णसरिसमपत्ता । ते दोवि धणाकंखी एवं चिन्ताउरा जाया ॥ ४ ॥ जइ नाम न तारुण्णे पुण्णे पत्तेवि होज्ज लच्छीए । अज्जणमणज्जचरीयस्स तस्स को पोरिसुग्गारो ? ॥ ५ ॥ ताव कुलं ताव जसो ता जणसोहग्गमग्गलं तस्स । जस्स न लच्छी वोच्छेयमेइ दाणाइकिरियासु ॥ ६ ॥ ता एत्तो तह जत्तो कायबो जह सिरी समुग्घडइ । पणयजणवंछियत्थाण करणओ कयचमक्कारा ॥ ७ ॥ अणुसरिमो देसंतरमारोहेमो परक्कमगिरिम्मि । नो दुल्लहा भविस्सइ अम्हं जणवल्लहा लच्छी ॥ ८ ॥ कयपत्थाणा जा सत्थसन्निवेसं गया पढमगस्स । समुवट्ठिओ महंतो विहिणो वसओ खणेण निही ॥ ९ ॥ तं गिव्हिऊण पुन्य-कर्म सारकथा ० ॥ २१९ ॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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