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________________ RECENCRACCURACHAR (बोली मन्झ लो चिय समुभवइ ।। ९९ ॥ तो नीओ वेयडम्मि पथए सिद्धकूडजिणभवणे ॥ नियकुंडलजुगठावणमिही विडियं परमओ तस्स ॥१०॥ दाणं चिंतारयणस्स तस्स उवणीयचिंतियफलस्त । कयमेएण स सग्गंगओ सरो, |ताओ रयणाओ॥१०१॥ तस्स समीहियसिद्धी सबा संपज्जइ अह कयाई। अंबफलाण अकाले जणणीए डोहलो जाओ॥ १०२॥ जाया भिसं किमंगी सा एसो संकिओ तओ नायं। सच्चं चिय जिणवयणं सो तियसो इह समुप्पन्नो ॥ १०३ ॥ तत्तो चिय रयणाओ फलिया अंवयतरू अकालेवि । संमाणियदोहलगा सा गभं वोदमाढत्ता ॥ १०४॥ मामेमु नयम वोलीणएसु अहिएसु किंचि रविवि । पुषदिसिव मणोहररूवं पुत्तं पसूया सा॥१०५॥ नवकारसारपीहगदाणं जायस्सिमस्स परिविहियं । तह जम्ममहो सुमहं जाओ कुलनंदिविद्धिकरो ॥ १०६ ॥णामकरणम्मि पत्तो ठवियं नाम जहा अरिहदत्तो । एसो होउत्ति कमेण वहुमाणो जिणिंदाणं ॥ १०७ ॥ तह साहूण सयासे निजतो तेसि पायकमलेमु। पाडिज्जतो ताडिजंतो जह रडइ अइकडुयं ॥१०८॥ पत्तम्मि जोवणभरे बहुलायन्नाओ तेण कन्नाओ। चउरो पिनाहियाओ अबाहचित्तो समं ताहिं॥ १०९ ।। अह सेवइ विसयसुहं अविसेसीकयनिसादिवसभागो । समए असोगदत्तेण मादिओ पुषसंगारो ॥११० ॥ तिलतुसमेत्तंपि न जा पडिबजइ ताव तिवसंवेगो । सो पबइओ काउं तवमुग्गं सुरपरो जाओ॥ १११ ॥ समए ओहिपओगो तेण कओ नायमेस अइगाढं । मिच्छत्तं पडिवन्नो तेणस्स असदहाणमिणं ॥ ११२ ॥ जाव न विहुरसरीरो विहिओ एसो न ताव पडिवोहो । होही एयरस विभाविऊण वाही तओ जणिओ ॥ ११३ ॥ घोरो जलोदरो नाम विजपरिवजणिजओ तेण । वियणा जंतनिपीडणतुल्ला सबंगिया जाया ॥ ११४ ॥ RSSSSSSSCREASEASEASON -
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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