________________
श्रीउपदेशपदे
॥ १९३ ॥
कयपरमपयासंघ संघोविय विग्धविरहिओ कुणइ । गुरुसुस्सूसणाइकिरियाओ निययवत्थासमुचियाओ ॥ २२ ॥ नवरमभद्दगरूवा रायपुरोहियसुया परिहति । साहू, वहिं विहारो गओवसग्गो तहिं सेसो ॥ २३ ॥ तं सोच्चा अपराजिय साहू चिंतापरो दढं जाओ । कह मह सहोयरो वि य होउं राया इय पमत्तो ॥ २४ ॥ जंण कुमारे दुबिणयकारिणोऽसमाणकिरियाण । साहूण सवजयवच्छलाण दूरं निवारेइ ॥ २५॥ अरहंत चेइयाणं पडणीयं तह अवन्नवायं च । जिणपवयणस्स अहियं सवत्थामेण वारेइ ॥ २६ ॥ इय आणाणुसरणओ सो परिभावेइ निग्गहे तेसिं । सत्ती ममत्थि एवं दया य महई कथा होइ ॥ २७ ॥ अन्नह साहुपओसा वज्जियदुज्जयतमोभरालीढा । जच्चंघव अनंतं भमिर्हति भवं दुहकिलंता ॥ २८ ॥ आपुच्छिकण सूरिं परेण विणएण पट्ठिओ नयरिं । उज्जेणिं पइ पत्तो कमेण साहूण वसहीए ॥ २९ ॥ विहिया वंदणगाई उचियठिई पायसोहणाई य । पत्ते भिक्खाकाले पत्तुग्गाहणपरो भणिओ ॥ ३० ॥ साहूहिं अज्ज अहं पाहूणगो तं विलंबसु भणाइ । अहमत्तलद्धिओ मे ण अन्नलद्धी वगरेइ ॥ ३१ ॥ ता ठवणकुलाणि अभद्दयाणि लोगे दुछणिज्जाणि । तह जाई ताई दंसह दंसिजंतेसु तेसु कमा ॥ ३२ ॥ एगेण साहुणा दंसियं च तं पच्चणीयकुमरहिं । तो नायतग्गिणं विसज्जिओ सो मुणी तेण ॥ ३३ ॥ तग्गेहम्मि अइगओ महया सद्देण धम्मलाभो त्ति । भणि भयाउराओ अंतेउरियाओ निहुएण ॥ ३४ ॥ सन्नं करेंति सद्देण हत्थसंचालणाइणा चेव । सो अवहेरिपहाणो
चिट्ठ ताव ते कुमरा ।। ३५ ।। आयन्नियतस्सद्दा उवगम्म दुवारघट्टणं काउं । उवहासपरा अभिवंदिऊण भासंति तं भयवं ! ॥ ३६ ॥ णच्चसु सो भणइ कहं गीएण विणा पवाइएणं च । नञ्चिज्जइ सुक्खत्तणमहो कहं तुम्ह जायं ति ?
श्रीअर्हद्द - तोदाहर
णम्
॥ १९३ ॥