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________________ श्रोउपदे___ शपदे ॥१८६॥ HESUS रणम् अड्डाइज्जदिणंते उवसंते वणदवम्मि जीवगणे । निस्सरियम्मि पएसा ताओ पायं तुम मोत्तुं ॥ १२८॥ जा चेट्ठसि ता8 श्रीमेघकुथेरत्तणेण परिजुन्नपुन्नसबंगो । रुहिराऊरियसंधिवाणो दूरं परिकिलंतो ॥ १२९ ॥ वज्जाहउब सेलो धसत्ति धरणीयले , मारोदाहतओ पडसि । दाहजराउरदेहो कागसिगालाइभक्खणओ ॥ १३०॥ तिक्खं वियणमुवगओ तिन्नि य राइंदियाणि जीवित्ता । वाससयमाउयं पालिऊण सुहभावणोवगओ ॥ १३१॥ कालं किच्चा इह धारिणीए कुच्छिसि पुत्तभावेण । उववन्नो ता मेहा! तुमए एयारिसा वियणा ॥१३२॥ सोढा तिरिएणावि हु अमुणियदुत्तरभवस्सरूवेण । ता अज किमंग है सहेसि नेव मुणिदेहसंघट्ट ? ॥१३३ ॥ सुयपुरभवो जाओ जाईसरणो खणेण सो ताहे । दूरुग्गयवेरग्गो हरिसंसुजलाउलच्छो य ॥ १३४ ॥ काउं पयाहिणतिगं वंदित्ता भावओ य भयवंतं । मिच्छादुक्कडपुर्व भणइ मोत्तु ममच्छिजुगं ॥१३५॥ जं सेसमंगमेयं दिन्नं साहूण तो जहिच्छाए । संघ{तु अभिग्गहमिय गिण्हइ सो मुणी मेहो ॥१३६ ॥ एकारस अंगाई अहिजिउं विहियभिक्खुपडिमो सो । गुणरयणवच्छरतवं काउं संलिहियसबंगो॥१३७॥ परिचिंतइ जाव जिणो सबसुहत्थी विहारमायरइ । ता चरमकालकिरिया काउं मे जुजए तत्तो॥१३८॥ आपुच्छइ भगवंतं जह अहयं सामि ! तवविसेसेण । एएणुट्ठाणणिसीयणाइकट्ठण काहामि ॥ १३९ ॥ तुम्हाणुनाए गिरिम्मि विउलनामम्मि रायगिहबाहिं। एयम्मि अणसणविहिं विहेउमिच्छा मम समत्थि ॥१४०॥ तो लद्धाणुन्नाओ खामित्ता समणसंघमन्नेहिं । कडजोगीहिं समेओ मुणीहिं 5 सणियं समारुहइ ॥१४॥ तत्थ गिरिम्मि विसुद्धे सिलायले सयलसल्लविमुक्को।पालियपक्खाणसणो विजयविमाणे समुप्पन्नो ॥१४२॥ तस्स दुवालसवरिसो परियाओ सो तओ चुओ संतो। वासे महाविदेहम्मि सिज्झिही बुज्झिही झत्ति ॥१४३॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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